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का वां॑ भू॒दुप॑मातिः॒ कया॑ न॒ आश्वि॑ना गमथो हू॒यमा॑ना। को वां॑ म॒हश्चि॒त्त्यज॑सो अ॒भीक॑ उरु॒ष्यतं॑ माध्वी दस्रा न ऊ॒ती ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kā vām bhūd upamātiḥ kayā na āśvinā gamatho hūyamānā | ko vām mahaś cit tyajaso abhīka uruṣyatam mādhvī dasrā na ūtī ||

पद पाठ

का। वा॒म्। भू॒त्। उप॑ऽमातिः। कया॑। नः॒। आ। अ॒श्वि॒ना॒। ग॒म॒थः॒। हू॒यमा॑ना। कः। वा॒म्। म॒हः। चि॒त्। त्यज॑सः। अ॒भीके॑। उ॒रु॒ष्यत॑म्। मा॒ध्वी॒ इति॑। द॒स्रा॒। नः॒। ऊ॒ती ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:43» मन्त्र:4 | अष्टक:3» अध्याय:7» वर्ग:19» मन्त्र:4 | मण्डल:4» अनुवाक:4» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (हूयमाना) आह्वान के किये अर्थात् बुलावा दिये हुए प्रशंसा को प्राप्त (माध्वी) मधुरता आदि गुणों से युक्त (दस्रा) दुःख के नाश करनेवाले (अश्विना) विद्या व्याप्त अध्यापक और उपदेशकजनो ! (वाम्) आप दोनों का (का) कौन (उपमातिः) उपमान (भूत्) होता है। और आप दोनों (कया) किस रीति से (नः) हम लोगों को (आ, गमथः) प्राप्त होते हो और (कः) कौन (वाम्) आप दोनों के (अभीके) समीप में (महः) बड़ा (चित्) भी (त्यजसः) त्याग करने योग्य व्यवहार है और समीप में किस (ऊती) रक्षण आदि क्रिया से (नः) हम लोगों की (उरुष्यतम्) सेवा करो ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे अध्यापक और उपदेशक जनो ! तभी आप दोनों की श्रेष्ठ उपमा होती है कि जब हम लोगों को विद्यावान् करो और दुष्ट दोषों को दूर पहुँचाओ ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे हूयमाना माध्वी दस्राऽश्विना ! वां कोपमातिर्भूत्। युवां कया रीत्या न आ गमथः को वामभीके महश्चित् त्यजसोऽस्त्यभीके कयोती न उरुष्यतम् ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (का) (वाम्) युवयोः (भूत्) भवति (उपमातिः) उपमानम् (कया) (नः) अस्मान् (आ) (अश्विना) व्याप्तविद्यावध्यापकोपदेशकौ (गमथः) प्राप्नुथः (हूयमाना) कृताह्वानौ प्रशंसितौ (कः) (वाम्) युवयोः (महः) महान् (चित्) (त्यजसः) त्यक्तुं योग्यो व्यवहारः (अभीके) समीपे (उरुष्यतम्) सेवेतम् (माध्वी) माधुर्यादिगुणोपेतौ (दस्रा) दुःखोपक्षयितारौ (नः) अस्मान् (ऊती) रक्षणादिक्रियया ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे अध्यापकोपदेशकौ ! तदैव युवयोरुत्तमोपमा जायते यदाऽस्मान् विद्यावतः कुर्य्यातं दुष्टान् दोषान् दूरे गमयतम् ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे अध्यापक उपदेशकांनो! जेव्हा आम्हाला विद्वान कराल व दोष दूर कराल. तेव्हाच तुम्ही दोघे श्रेष्ठ उपमायुक्त ठराल. ॥ ४ ॥